श्री नवग्रह देवता
मंदिर प्रांगण में नया गेवल रथात गर्भपुर के ईशान दिशा में श्रीष्ठित है। यहां नवग्रह अपने-अपने वाहन पर अपनी दिशाओं की तरफ युज करके प्रतिष्टित है। यहां सभी नवग्रह का एक साथ दर्शन करना नारियल का भोग अर्पण करना एवं सांयकाल में तिल के तेल का दीपदान करने से नवग्रह की प्रसन्नता प्राप्त होती है। सूर्यदिनन्ग्रहैं। के मंत्रो से हवन कराने में नवग्रह की शांति होती है एवं आयु, आरोग्य लक्ष्मी की वृद्धि एवं विश्नों का नाश होता है।
शास्त्रानुसार जिस मनुष्य को मानसिक व्याधि हो, शारीरिक रोग ते बारंबार रोग से ग्रस्त होता हो, दुर्घटना का भय हो, विकट शत्रुओं द्वारा पीड़ित हो, मारक ग्रहों की पीड़ा हो, गृह में वाद-विवाद क्लेश बना रहता हो, बारम्बार रोग से पीग बनती हो, अकस्मात धन की हानि होती रहती हो, विवाह, सन्तान में बारबार बाधा बनती हो अथवा सूर्यीदि नवग्रहों से सम्बन्धित महादशा पीकारक होती हो तो सूर्यादि नवग्रहों प्रसन्नता के लिए नवग्रह पूजा अपाना किसी भी ग्रह की पूजा एवं हवन द्वारा समस्त पीड़ा की शांति, सुख निरोगता एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। सूर्यादि नवग्रहों की पूजा में श्री सूर्य, चन्द्र मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शात, राहु, केतु ग्रह का घोड्योपचार पूजा यथा पाचन, अध्र्यम, स्नान, बस्त्र उपवस्त्र, भज्ञोपवीत, रोली अन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, इत्र, धूप, दीप, नैनेय, फल नारियल, ताम्बूल (पान) सुपारी, इलाइची, लौंग एवं विशेष अध्ये अर्पण किया जाता है। भी ग्रहके नाम मंत्र से । एवं पूजन के उपरान्त सभी ग्रहां अथवा किसी एक सौ आठ आहुति प्रतीक ग्रह की समिधा यथा सूर्य की मदार की लकड़ी चन्द की दाक की लकड़ी, मंगल के लिए दौर की लकड़ी, बुध के लिए अपामार्ग की लकड़ी, बृहस्पति के लिए पीपल की लकी, शुक्र के लिए गूलर की लकड़ी, शमी के लिए शमी की लकड़ी, राहु के लिए दूब और केतु के लिए कुशा की समिधा से एक यो आठ आहुति शुद्ध घी के साथ हवन बदले प्रदान की जाती है। श्री सूर्यादि नवग्रह की पूजा एवं हवन कराने से समस्त प्रकार की ग्रहपीडा से शांति प्राप्त होती है।