श्री हरिहर पारिजात वृक्ष
श्री हरिहर पारिजात वृक्ष
मंदिर प्रांगण के गर्भगृह से उत्तर दिशा में श्री पारिजात वृक्ष प्रतिष्ठित है। पारिजात के पेड़ को हरसिंगार का वृक्ष भी कहा जाता है। पुराणानुसार पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। जिसे देवराज इंद्र ने अपनी अमरावती स्वर्ग नगरी वाटिका में रोप दिया था। पुराणानुसार द्वापर युग में पारिजात वृक्ष को स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया था। नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्री कृष्ण स्वर्ग गए थे और वहां देवराज इंद्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्री कृष्ण ने देवी रुक्मणी को दे दिया। देवी सत्यभामा जो श्री कृष्ण की पटरानी थी उनको देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था। तभी नारद जी आए और सत्यभामा देवी को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उसे पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मणी भी चिर यौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्री कृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद करने लगी। तब भगवान श्री कृष्ण ने देवी सत्यभामा की प्रसन्नता के लिए स्वर्ग से पारिजात वृक्ष को इंद्र द्वारा प्राप्त किया। सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण द्वारा यह दिव्य पारिजात वृक्ष इस धरती में रोपित किया गया। इस स्वर्ग वृक्ष को कल्पवृक्ष की संज्ञा प्राप्त होती है। जो कोई भी इस वृक्ष के नीचे मनोकामना करता है वह पूर्ण होती है। इस वृक्ष की छाया का सेवन करने से समस्त संकट दूर होते हैं। इसके दर्शन मात्र से अमंगलों का नाश होता है एवं मंगल, सुख, सौभाग्य की वृद्धि होती है। यह साक्षात देववृक्ष है। इसके दर्शन पूजन एवं दीपदान करने से मनोभिलाषा पूर्ण होती है व पुण्य की प्राप्ति होती है।