श्री राधामाधव युगल भगवान
श्री राधामाधव युगल भगवान
मंदिर मध्य में श्री राधामाधव युगल भगवान का श्री विग्रह प्रतिष्ठित है। यहां श्री माधव काले रंग के स्वरूप में एवं श्री राधारानी श्वेत वर्ण स्वरूप में विराजमान है एवं श्री माधव भगवान बंशी बजाने की मुद्रा में विराजमान हैं। प्रति शनिवार श्री राधामाधव भगवान के दर्शन एवं सायंकाल संध्या समय में दीपदान करने मात्र से रोग, शोक, भय, संकट का नाश होता है एवं विशेष रूप से एक वर्ष तक प्रति शनिवार भगवान का सुगन्धित पुष्प या तुलसी पत्र द्वारा सहस्रनाम से पूजन करने से एवं सायंकाल संध्या समय में तिल के तेल का दीपदान करने से मनोकामना पूर्ण होती है। आयु आरोग्य व लक्ष्मी की वृद्धि होती है। श्री राधामाधव का यहां प्रेममय स्वरूप है एवं प्रेम व भक्ति प्रदान करते हैं। शास्त्रानुसार जो मानव लक्ष्मी की कृपा प्रसाद की इच्छा करता है, भूमि, भवन, वाहनादि भौतिक सुख सम्पदा की प्राप्ति की इच्छा करता है तथा जो कन्या विवाह सुख प्राप्त करना चाहती है, जिसे सन्तान सुख की कामना हो, उसे भगवान श्री राधामाधव की सहस्रार्चन पूजा प्रत्येक माह के शनिवार को एक वर्ष तक करने से मनोकामना पूर्ण होती है। यदि कोई मानव महामारी, पितृ दोष, सर्पादि विषैले जन्तुओं से पीड़ा का भय हो, दरिद्रता से ग्रसित हो तो इस पूजा से सभी उपद्रवों से मुक्ति मिलती है। भक्ति प्राप्त करने वालों के लिए तो यह पूजा अमृत के समान है इस सहस्रार्चन के प्रभाव से भी श्री राधा कृष्ण में भक्ति रूपी फल प्राप्त होता है। भगवान श्रीराधामाधव युगल भगवान की एक हजार नाम से सुगन्धित पुष्प अथवा तुलसी पत्र को अर्पण करके सहस्रार्चन पूजा की जाती है। इस पूजा में श्री राधामाधव युगल भगवान जी की षोडषोपचार पूजा यथा पाघम्, अर्घ्यम, स्नान, वस्त्र-उपवस्त्र, यज्ञोपवीत, इत्र, रोली- चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, नारियल, ताम्बूल (पान) सुपारी, इलाइची, लौंग अर्पण करके श्री राधामाधव युगल भगवान के सहस्रनाम के साथ सुगन्धित पुष्प अथवा तुलसी पत्र अर्पण किया जाता है। शनिवार को इस पूजा को कराने से विशेष फल एवं पुण्य की प्राप्ति होती है।
विशेष अभिलाषा की पूर्ति हेतु 101 दिन तक नाम गोत्र संकल्प करके श्री राधामाधव युगल भगवान जी का सहस्रार्चन पूजा कराने से समस्त उपद्रवों का नाश होता है एवं श्री राधामाधव भगवान की प्रसन्नता से पुण्य की प्राप्ति एवं मनोभिलाषा पूर्ण होती है।